MANTRA , AARTIS , STOTRAS 2

 1. SuryashtakStotram 


2.SuryaMantra 




3.Shridevi Ashtottar - Shat Namavali 



4. Shri Surya Ashtottar-Shat Namavali 




5. Shri Dattatreya Stotram 













6. Tarak Mantra Shree Swami Samarth

नि:शंक हो निर्भय हो मना रे,
प्रचंड स्वामीबळ पाठीशी रे,
अतर्क्य अवधुत हे स्मरणगामी,
अशक्य ही शक्य करतील स्वामी,
जिथे स्वामीपाय तिथे न्युन काय,
स्वये भक्त प्रारब्ध घडवी ही माय.
आज्ञेविन काळ ना नेई त्याला
परलोकीही ना भिती तयाला,
उगाची भितोसी भय हे पळु दे.
जवळी उभी स्वामी शक्ती कळु दे,
जगी जन्ममृत्यु असे खेळ ज्यांचा,
नको घाबरु तु असे बाळ त्यांचा.
खरा होई जागा श्रद्धेसहीत,
कसा होशी त्याविण तु स्वामीभक्त.
कितीदा दिला बोल त्यांनीच हात,
नको डगमगु स्वामी देतील साथ,
विभुती नमन नाम ध्यानादी तीर्थ
स्वामीच ह्या पंचप्राणामृतात,
हे तीर्थ घे आठवी रे प्रचिती,
न सोडी कदा स्वामी ज्या घेई हाती.

श्री स्वामी चरणविंदार्पणमस्तु ||


7. Pasaydan 


(संत ज्ञानेश्वर विरचित ज्ञानेश्वरी या ग्रंथातील शेवटच्या -(ओवी १७९४ ते १८०२)- १८ व्या अध्यायाचे समापन पसायदान या प्रार्थनेने होते.)

आतां विश्वात्मकें देवें । येणें वाग्यज्ञें तोषावें । तोषोनि मज द्यावें । पसायदान हें ॥ १ ॥
जे खळांची व्यंकटी सांडो । तयां सत्कर्मीं रती वाढो । भूतां परस्परें जडो। मैत्र जीवांचें ॥ २ ॥
दुरिताचें तिमिर जावो । विश्व स्वधर्म सूर्यें पाहो । जो जें वांच्छील तो तें लाहो । प्राणिजात ॥ ३ ॥
वर्षत सकळमंगळीं । ईश्वर निष्ठांची मांदियाळी । अनवरत भूमंडळीं । भेटतु या भूतां ॥ ४ ॥
चलां कल्पतरूंचे आरव । चेतना चिंतामणीचें गांव । बोलते जे अर्णव । पीयूषाचे ॥ ५ ॥
चंद्रमे जे अलांछन । मार्तंड जे तापहीन । ते सर्वांही सदा सज्जन । सोयरे होतु ॥ ६ ॥
किंबहुना सर्वसुखीं । पूर्ण होऊनि तिहीं लोकीं । भजिजो आदिपुरुखीं । अखंडित ॥ ७ ॥
आणि ग्रंथोपजीविये । विशेषीं लोकीं इयें । दृष्टादृष्ट विजयें । होआवें जी ॥ ८ ॥
येथ म्हणे श्रीविश्वेश्वरावो । हा होईल दानपसावो । येणें वरें ज्ञानदेवो । सुखिया झाला ॥ ९ ॥

8. Kapur aarti


धूप दीप झाला आता कर्पूर आरती । रामा कर्पूर आरती ॥
सहस्त्र सिंहासनी बैसले जानकीपती । बैसले अयोध्यानृपती ॥ धृ ॥

कर्पूरवडीसम मानस माझे निर्मळ राहू दे । रामा निर्मळ राहू दे ॥
कर्पूरवडीचा भावभक्तिचा सुगंध वाहू दे । रामा सुगंध वाहू दे ॥
कर्पूरवडीची लावून ज्योत, पाहीन तव मूर्ति । रामा पाहीन तव मूर्ति ॥
सहस्त्र सिंहासनी बैसले जानकीपती । बैसले अयोध्यानृपती ॥ १ ॥

ध्यान कळेना,ज्ञान कळेना ना कळे काही । रामा ना कळे काही ॥
शब्दरूपी गुंफ़ुनि माला वाहतो पायी । रामा वाहतो पायी ॥
मुखी नाम, नेत्री ध्यान, हृदयी तव मूर्ति । रामा हृदयी तव मूर्ति ॥
सहस्त्र सिंहासनी बैसले जानकीपती । बैसले अयोध्यानृपती ॥ २ ॥

कर्पूरगौरं करुणावतारं ।
संसारसारं भुजगेन्द्रहारम ।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे ।
भवं भवानीसहितं नमामि ॥

कर्पूरारार्तिक्यदीपं समर्पयामि ॥


9. Saraswati ya kundentu...

या कुन्देन्दुतुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता II
या वीणावर दण्डमण्डितकरा या श्वेत पद्मासना Ii
या ब्रम्हाच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वंदिता II
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्या पहा II


10. Shivtandav stotram


जटाटवी-गलज्जल-प्रवाह-पावित-स्थले
गलेऽव-लम्ब्य-लम्बितां-भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्
डमड्डमड्डमड्डम-न्निनादव-ड्डमर्वयं
चकार-चण्ड्ताण्डवं-तनोतु-नः शिवः शिवम् .. १..

जटा-कटा-हसं-भ्रम भ्रमन्नि-लिम्प-निर्झरी-
-विलोलवी-चिवल्लरी-विराजमान-मूर्धनि .
धगद्धगद्धग-ज्ज्वल-ल्ललाट-पट्ट-पावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम .. २..

धरा-धरेन्द्र-नंदिनी विलास-बन्धु-बन्धुर
स्फुर-द्दिगन्त-सन्तति प्रमोद-मान-मानसे .
कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्धरापदि
क्वचि-द्दिगम्बरे-मनो विनोदमेतु वस्तुनि .. ३..

जटा-भुजङ्ग-पिङ्गल-स्फुरत्फणा-मणि प्रभा
कदम्ब-कुङ्कुम-द्रव प्रलिप्त-दिग्व-धूमुखे
मदान्ध-सिन्धुर-स्फुरत्त्व-गुत्तरी-यमे-दुरे
मनो विनोदमद्भुतं-बिभर्तु-भूतभर्तरि .. ४..

सहस्र लोचन प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर
प्रसून-धूलि-धोरणी-विधू-सराङ्घ्रि-पीठभूः
भुजङ्गराज-मालया-निबद्ध-जाटजूटक:
श्रियै-चिराय-जायतां चकोर-बन्धु-शेखरः .. ५..

ललाट-चत्वर-ज्वलद्धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा-
निपीत-पञ्च-सायकं-नमन्नि-लिम्प-नायकम्
सुधा-मयूख-लेखया-विराजमान-शेखरं
महाकपालि-सम्पदे-शिरो-जटाल-मस्तुनः .. ६..

कराल-भाल-पट्टिका-धगद्धगद्धग-ज्ज्वल
द्धनञ्ज-याहुतीकृत-प्रचण्डपञ्च-सायके
धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-कुचाग्रचित्र-पत्रक
-प्रकल्प-नैकशिल्पिनि-त्रिलोचने-रतिर्मम … ७..

नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत्
कुहू-निशी-थिनी-तमः प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः
निलिम्प-निर्झरी-धरस्त-नोतु कृत्ति-सिन्धुरः
कला-निधान-बन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः .. ८..

प्रफुल्ल-नीलपङ्कज-प्रपञ्च-कालिमप्रभा-
-वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचिप्रबद्ध-कन्धरम् .
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकछिदं तमंतक-च्छिदं भजे .. ९..

अखर्व सर्व-मङ्ग-लाकला-कदंबमञ्जरी
रस-प्रवाह-माधुरी विजृंभणा-मधुव्रतम् .
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्तकान्तकं भजे .. १०..

जयत्व-दभ्र-विभ्र-म-भ्रमद्भुजङ्ग-मश्वस-
द्विनिर्गमत्क्रम-स्फुरत्कराल-भाल-हव्यवाट्
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्ग-तुङ्ग-मङ्गल
ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः .. ११..

दृष-द्विचित्र-तल्पयोर्भुजङ्ग-मौक्ति-कस्रजोर्
-गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्वि-पक्षपक्षयोः .
तृष्णार-विन्द-चक्षुषोः प्रजा-मही-महेन्द्रयोः
समप्रवृतिकः कदा सदाशिवं भजे .. १२..

कदा निलिम्प-निर्झरीनिकुञ्ज-कोटरे वसन्
विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थ-मञ्जलिं वहन् .
विमुक्त-लोल-लोचनो ललाम-भाललग्नकः
शिवेति मंत्र-मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् .. १३..

इदम् हि नित्य-मेव-मुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धि-मेति-संततम् .
हरे गुरौ सुभक्ति-माशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् .. १४..

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः
शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे .
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः .. १५..


11. नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी


दिनानाथ हा राम कोदंडधारी! पुढे देखता काळ पोटी थरारी!
मना वाक्य नेमस्त हे सत्य मानी!नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी!

पदी राघवाचे सदा ब्रीद गाजे! बळे भक्तरीपूशिरी कांबी वाजे!
पुरी वाहिली सर्व जेणे विमानी! नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी!

समर्थाचिया सेवका वक्र पाहे! असा सर्व भूमंडळी कोण आहे!
जयाची लीळा वर्णिती लोक तीन्ही! नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी!!

महासंकटी सोडिले देव जेणे! प्रतापे बळे आगळा सर्वगूणे!
जयाते स्मरे शैलजा शूलपाणी! नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी!!

अहल्या शिळा राघवे मुक्त केली! पदी लागिता दिव्य होऊनि गेली!
जया वर्णिता शीणली वेदवाणी! नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी!!

वसे मेरुमांदार हे सॄष्टीलीळा! शशी सूर्य तारांगणे मेघमाळा!
चिरंजीव केले जनी दास दोन्ही! नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी!!

उपेक्षा कदा रामरुपी असेना! जिवा मानवा निश्चियो तो वसेना!
शिरी भार वाहेन बोले पुराणी! नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी!!

असे हो जया अंतरी भाव जैसा! वसे हो तया अंतरी देव तैसा!
अनन्यास रक्षीतसे चापपाणी! नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी!!

सदा सर्वदा देव सन्नीध आहे| कृपाळूपणे अल्प धारिष्ट पाहे!
सुखानंद आनंद कैवल्यदानी! नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी!

सदा चक्रवाकासि मार्तंड जैसा! उडी घालितो संकटी स्वामी तैसा!
हरीभक्तिचा घाव गाजे निशाणी! नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी!!